Friday 23 November 2007

पियुष महेता द्वारा जारी संगीत पहेली क्रमांक १

आज इरफानजी से क्षमा मांग कर मैं बी थोडा सा उनके नक्शे कदम पर चलने का दिखावा कर रहा हूँ

इधर एक गाने का शुरूआती संगीत प्रस्तूत कर रहा हूँ । जो रवि साहब के संगीतमें हमारी सबकी ग्रेट आशाजीने (यह शब्द श्री ब्रिज भूषणजी ने एक बार सी. रामचन्द्र के एक प्रायोजीत कार्यक्रममें लिया था, उसमें सी. रामचंदजीने नवरंग फिल्म मुजरा गीत आ दिल से दिल मिला ले के बारेमें बात करते हुए प्रयोजे थे ।} गाया है, इतना क्ल्यू शायद सही रहेगा ।


http://www.esnips.com/doc/01b3e5f3-a70a-4ae1-a550-894f0c243c82/PM-RM-Q-1

घन्यवाद ।

Saturday 3 November 2007

विविध भारती की लोकप्रियता के सामने रूकवटें-१

पाठक गणको किये गये वादे के मुताबिक मैं इस विषय पर अपने विचारके कुछ अंश को ले कर हाजि़र हूँ ।

सबसे पहेले तो सरकारके माहिती प्रसारण मंत्रालयके (मंत्रीयों के अंगत सचिवो सहीत) अधिकारीयों तथा आकाशवाणी के महानिर्देषालय के उच्च अधिकारीयों की ’यस मिनिस्टर’ यानि ’जी मंत्रीजी’ वाली मानसिकता इसके लिये शुरू से यानि आझादी कालसे ही सबसे बडी़ जिम्मेवार है । जो किन प्रजाके किस प्रश्नको आगे करना और किस प्रश्न को पिछे करना वह अपनी पसंदके मुताबिक तय करते है । और उसईके मुताबिक सरकारमें दरखास्तें प्रस्तूत कि जाती है । यह बात हमारे सुरत शहरमें आकाशवाणीकी स्थानिय खंड समयावधी वाले एफ.एम. केन्द्र (जो १९९३में एक खानेकी पूरी थाली के जरूरतमंद को आधी रोटी का एक टुकडा फेक कर बच्चों की तरह पटाया जाय या २२ साल के इन्सानको खिलौनेवाली ट्रायसिकल दी जाय इस तरह) दिया गया था, और इस बात को मैनें दिल्ही से सुरतमें आये सहायक महानिर्देषक (इ. स. २००१में) श्री श्याम कुमार शर्माजी को भी बोली थी की बडें अफ़सरान अपनी कचहरीयोँमें बैठ कर ही निर्णय लेते है, कि कौनसी जगह किस प्रकारके केन्द्र देने है । विविध भारती चेनलके रूपमें दूसरा चेनल देने के लियेमैं १९९७से लिख रहा था और करीब एक सालबाद अपने संसदीय प्रतिनिधी उस समयके कपडा मंत्री द्वारा लिखना शुरू किया तो उसको अलग चेनल की बजाय ०२-०८-२००२ के दिन विविध भारतीके रूपमें परिवर्तेत कर दिया गया । जो उसके बाद भी करीब २००५ तक स्टिरीयो नहीं हुआ था । शायद यह बातें इन्दौर, हैद्राबाद, अहमदाबाद के श्रोताओं और पाठकोको ज्यादा महत्वकी न लगे फि़र भी जरूरी मानता हूँ । क्यों कि, २००२ तक हमने विविध भारती के कार्यक्रमों को अलग अलग दूर दूरके केन्द्रों से सुननेकी जो परेशानियाँ सही है वह हम सुरतवाले ही समझ सकते है । उदाहरण के तोर पर जब लधू- तरंग पर विविध भारती पंचरंगी कार्यक्रम के नामसे दो अलग अलग कम्प संख्या पर आती थी तब भी मुम्बई से कार्यक्रम सुबह ९.३० की जगह ८.३० पर ही समाप्त होते थे । दो पहर १२.३० की जगह २.०० बजे शुरू होते थे और रात्री भी १०.३० की जगह ८.१५ पर बंध होते थे । और मद्रास (चेन्नाई)से प्रसारण जारि रहता था । पर दोनो केन्द्र सभाकी शुरूआत और समप्तीमें अपनी पहचान सिर्फ़ ’ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी प्रोग्राम ’ इन शब्दोमे देते थे पर कम्प संख्या सिर्फ़ अपनी अपनी ही बताते थे । दो पहर का मन चाहे गीत मुम्बईसे शोर्ट वेव पर १.३० की जगह दो बजे शुरू होते हुए आधा घंटा देरीसे और सिर्फ़ आधा ही आता था । इस तरह एक ही पहचान वाले दो केन्द्रों के बीच कोई संकलन या एकवाक्यता नहीं थी । और विविध भारती के पत्रवाली कार्यक्रममें स्थानिय केन्द्रों के श्रोताओं को ध्यानमें रख कर ही पत्रोंको शामिल किया जाता था ।

आज एफ. एम. स्टिरीयो डिजीटल प्रसारण तक़निक आम बात हुई है पर इस जमानेमें भी मुम्बई, दिल्ही, कोलकटा, और चेन्नाई के स्थानिय विविध भारती केन्द्रोंको जैसे अन्य शहरोंके स्थानिय विविध भारती मध्यम तरंग केन्द्रोंको एफ. एम. स्टिरीयोमें परिवर्तीत किया गया है, नहीं किया गया, जब कि, इन शहरों में पहेले मेट्रो और आज एफ. एम. गोल्ड और एफ. एम. रेइन्बो चेनल्स चल रहे है । और अन्य निजी़ रेडियो चेनल्स से पूरा एफ. एम, बेन्ड भरा हुआ है, इन दो ए.आई. आर. एफ. एम. चेनल्स को एक संयूक्त चेनल में परिवर्तित करके एक बचने वाली एफ. एम. कम्पसंख्या पर स्थानिय विविध भारतीकी विज्ञापन प्रसारण सेवा को तबदिल करना जरूरी है, यह मैं मेरे एक निजी़ सुरतमें पले बढेपर ३६ सालो से मुम्बई में बस रहे पर हाल हीमें १८ सालों के अन्तराल के बाद कुछ ही दिनों सुरत रह कर गये मित्र के उदाहरण से कहता हूँ, जो इन एफ. एम. चेनल्सकी भरमारसे विविध भारती को करीब करीब भूल चूका था पर सुरतमें एफ. एम. पर सुन कर विविध भारती का दिवाना बन कर गया और वहाँ विविध भारती के प्रसारणसे असंतुष्ट रहने लगा है ।

समय समय पर और बातें छेडूंगा । पर एक साथ बहूत लिखूंगा तो युनूसजी सहित सब समयाभावके कारण मानसिक रूपसे पढ़्ते पढ़्ते थक जायेंगे । इस लिये हाल इतना ही ।
पियुष महेता ।

विविध भारतीकी लोकप्रियतामें रूकावटें-१

पाठक गणको किये गये वादे के मुताबिक मैं इस विषय पर अपने विचारके कुछ अंश को ले कर हाजि़र हूँ ।

सबसे पहेले तो सरकारके माहिती प्रसारण मंत्रालयके (मंत्रीयों के अंगत सचिवो सहीत) अधिकारीयों तथा आकाशवाणी के महानिर्देषालय के उच्च अधिकारीयों की ’यस मिनिस्टर’ यानि ’जी मंत्रीजी’ वाली मानसिकता इसके लिये शुरू से यानि आझादी कालसे ही सबसे बडी़ जिम्मेवार है । जो किन प्रजाके किस प्रश्नको आगे करना और किस प्रश्न को पिछे करना वह अपनी पसंदके मुताबिक तय करते है । और उसईके मुताबिक सरकारमें दरखास्तें प्रस्तूत कि जाती है । यह बात हमारे सुरत शहरमें आकाशवाणीकी स्थानिय खंड समयावधी वाले एफ.एम. केन्द्र (जो १९९३में एक खानेकी पूरी थाली के जरूरतमंद को आधी रोटी का एक टुकडा फेक कर बच्चों की तरह पटाया जाय या २२ साल के इन्सानको खिलौनेवाली ट्रायसिकल दी जाय इस तरह) दिया गया था, और इस बात को मैनें दिल्ही से सुरतमें आये सहायक महानिर्देषक (इ. स. २००१में) श्री श्याम कुमार शर्माजी को भी बोली थी की बडें अफ़सरान अपनी कचहरीयोँमें बैठ कर ही निर्णय लेते है, कि कौनसी जगह किस प्रकारके केन्द्र देने है । विविध भारती चेनलके रूपमें दूसरा चेनल देने के लियेमैं १९९७से लिख रहा था और करीब एक सालबाद अपने संसदीय प्रतिनिधी उस समयके कपडा मंत्री द्वारा लिखना शुरू किया तो उसको अलग चेनल की बजाय ०२-०८-२००२ के दिन विविध भारतीके रूपमें परिवर्तेत कर दिया गया । जो उसके बाद भी करीब २००५ तक स्टिरीयो नहीं हुआ था । शायद यह बातें इन्दौर, हैद्राबाद, अहमदाबाद के श्रोताओं और पाठकोको ज्यादा महत्वकी न लगे फि़र भी जरूरी मानता हूँ । क्यों कि, २००२ तक हमने विविध भारती के कार्यक्रमों को अलग अलग दूर दूरके केन्द्रों से सुननेकी जो परेशानियाँ सही है वह हम सुरतवाले ही समझ सकते है । उदाहरण के तोर पर जब लधू- तरंग पर विविध भारती पंचरंगी कार्यक्रम के नामसे दो अलग अलग कम्प संख्या पर आती थी तब भी मुम्बई से कार्यक्रम सुबह ९.३० की जगह ८.३० पर ही समाप्त होते थे । दो पहर १२.३० की जगह २.०० बजे शुरू होते थे और रात्री भी १०.३० की जगह ८.१५ पर बंध होते थे । और मद्रास (चेन्नाई)से प्रसारण जारि रहता था । पर दोनो केन्द्र सभाकी शुरूआत और समप्तीमें अपनी पहचान सिर्फ़ ’ये विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी प्रोग्राम ’ इन शब्दोमे देते थे पर कम्प संख्या सिर्फ़ अपनी अपनी ही बताते थे । दो पहर का मन चाहे गीत मुम्बईसे शोर्ट वेव पर १.३० की जगह दो बजे शुरू होते हुए आधा घंटा देरीसे और सिर्फ़ आधा ही आता था । इस तरह एक ही पहचान वाले दो केन्द्रों के बीच कोई संकलन या एकवाक्यता नहीं थी । और विविध भारती के पत्रवाली कार्यक्रममें स्थानिय केन्द्रों के श्रोताओं को ध्यानमें रख कर ही पत्रोंको शामिल किया जाता था ।

आज एफ. एम. स्टिरीयो डिजीटल प्रसारण तक़निक आम बात हुई है पर इस जमानेमें भी मुम्बई, दिल्ही, कोलकटा, और चेन्नाई के स्थानिय विविध भारती केन्द्रोंको जैसे अन्य शहरोंके स्थानिय विविध भारती मध्यम तरंग केन्द्रोंको एफ. एम. स्टिरीयोमें परिवर्तीत किया गया है, नहीं किया गया, जब कि, इन शहरों में पहेले मेट्रो और आज एफ. एम. गोल्ड और एफ. एम. रेइन्बो चेनल्स चल रहे है । और अन्य निजी़ रेडियो चेनल्स से पूरा एफ. एम, बेन्ड भरा हुआ है, इन दो ए.आई. आर. एफ. एम. चेनल्स को एक संयूक्त चेनल में परिवर्तित करके एक बचने वाली एफ. एम. कम्पसंख्या पर स्थानिय विविध भारतीकी विज्ञापन प्रसारण सेवा को तबदिल करना जरूरी है, यह मैं मेरे एक निजी़ सुरतमें पले बढेपर ३६ सालो से मुम्बई में बस रहे पर हाल हीमें १८ सालों के अन्तराल के बाद कुछ ही दिनों सुरत रह कर गये मित्र के उदाहरण से कहता हूँ, जो इन एफ. एम. चेनल्सकी भरमारसे विविध भारती को करीब करीब भूल चूका था पर सुरतमें एफ. एम. पर सुन कर विविध भारती का दिवाना बन कर गया और वहाँ विविध भारती के प्रसारणसे असंतुष्ट रहने लगा है ।

समय समय पर और बातें छेडूंगा । पर एक साथ बहूत लिखूंगा तो युनूसजी सहित सब समयाभावके कारण मानसिक रूपसे पढ़्ते पढ़्ते थक जायेंगे । इस लिये हाल इतना ही ।
पियुष महेता ।

Thursday 16 August 2007

श्री युनूसजी,
आपके इस रेडियोवानीने मूझे हैदराबाद स्थित श्री सागरचंद नहार कि बहुमूल्य मैत्री प्रदान की है
आपका शुभ-चिन्तक,
पियुष महेता- सूरत -३९५००१.